वट सावित्री व्रत की कथा प्राचीन काल की एक अत्यंत प्रेरणादायक कहानी है, जो पति-पत्नी के प्रेम, निष्ठा, त्याग और साहस का प्रतीक मानी जाती है।
प्राचीन काल में मद्र देश के राजा अश्वपति और उनकी रानी को लंबे समय तक संतान नहीं हुई। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने सूर्य देव की कठोर उपासना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवताओं ने उन्हें एक कन्या के जन्म का वरदान दिया। जन्म लेने वाली बालिका को ‘सावित्री’ नाम दिया गया, क्योंकि वह तपस्या का फल थी और जन्म से ही तेजस्वी, गुणवान और भक्तिपूर्ण स्वभाव की थी।
जब सावित्री विवाह योग्य हुई, तब राजा ने योग्य वर की खोज शुरू की। कई राजाओं और राजकुमारों से बात न बनने पर राजा ने सावित्री को स्वयं वर चुनने की अनुमति दी। सावित्री वन-वन घूमती हुई एक स्थान पर पहुँची जहाँ उसने अंधे और निर्वासित राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को देखा। सत्यवान धर्मनिष्ठ, पराक्रमी और सरल स्वभाव का युवक था। सावित्री ने उसी क्षण उसे अपने जीवनसाथी के रूप में चुन लिया।
राजा अश्वपति को जब इस निर्णय की जानकारी हुई, तब वह चिंतित हो उठे। उसी समय देव ऋषि नारद वहां आए और उन्होंने बताया कि सत्यवान अल्पायु है और एक वर्ष के भीतर उसकी मृत्यु निश्चित है। राजा ने सावित्री से निर्णय बदलने को कहा, लेकिन सावित्री अडिग रही। उसने स्पष्ट शब्दों में कहा, “एक बार मैंने जीवनसाथी चुन लिया, तो अब बदलना मेरे धर्म के विरुद्ध है।” अंततः राजा को उसकी इच्छा स्वीकार करनी पड़ी और सावित्री का विवाह सत्यवान से संपन्न हुआ।
विवाह के बाद सावित्री अपने सास-ससुर और पति के साथ वन में रहने लगी। एक वर्ष का समय कब बीत गया, पता ही नहीं चला। नियत दिन जब सत्यवान को मृत्यु आनी थी, उस दिन सावित्री ने कठोर उपवास रखा, पूजा की और ध्यान साधना की। दोपहर में सत्यवान लकड़ी काटने वन गया, तो सावित्री भी उसके साथ चली गई।
लकड़ी काटते-काटते सत्यवान को सिर में तेज़ पीड़ा हुई और वह अचेत होकर जमीन पर गिर पड़ा। उसी क्षण यमराज वहां प्रकट हुए और सत्यवान की आत्मा लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे। सावित्री ने विलाप नहीं किया, बल्कि दृढ़ निश्चय के साथ यमराज के पीछे-पीछे चल पड़ी।
⚰️ यमराज और सावित्री संवाद
यमराज ने उसे कई बार लौटने को कहा, लेकिन सावित्री नहीं मानी। अंततः यमराज उसकी तपस्या, समर्पण और पतिव्रत धर्म से प्रसन्न हुए और उसे तीन वरदान मांगने का अवसर दिया — परंतु शर्त यह थी कि वह अपने पति का जीवन नहीं मांगेगी।
🎁 सावित्री के तीन वरदान
सावित्री ने पहला वरदान मांगा: उसके ससुर राजा द्युमत्सेन की आँखों की रोशनी और उनका खोया हुआ राज्य उन्हें पुनः प्राप्त हो।
दूसरे वरदान में उसने अपने पिता राजा अश्वपति के लिए सौ पुत्रों की प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा।
तीसरे वरदान में उसने चतुराईपूर्वक कहा — “मैं सत्यवान की पत्नी हूं। कृपा करके मुझे सत्यवान से उत्तम संतति की प्राप्ति हो।”
यह सुनते ही यमराज चौंक गए। यह वरदान तभी संभव था जब सत्यवान जीवित हो। सावित्री की निष्ठा और बुद्धिमत्ता के आगे यमराज झुक गए और उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दे दिया।
🙏 जीवनदान और कथा का निष्कर्ष
सावित्री सत्यवान के शव के पास लौटीं, और थोड़ी ही देर में सत्यवान होश में आ गया। उसे कुछ भी ज्ञात नहीं था कि उसके साथ क्या हुआ। वह सावित्री से पूछता है कि वह उसकी गोद में क्यों है। सावित्री मुस्कराई और उसे घर चलने को कहा।
घर लौटने पर देखा कि उसके ससुर की नेत्र ज्योति वापस आ गई थी और राज्य भी पुनः प्राप्त हो गया था। पिता अश्वपति को भी संतति का वरदान मिला। इस प्रकार यमराज द्वारा दिए गए तीनों वरदान पूर्ण हुए और सब कुछ शुभ हो गया।
इस चमत्कारी घटना के स्मरण में हर वर्ष वट सावित्री व्रत 2025 को विवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं। वे सावित्री जैसी नारी शक्ति की प्रतीक बनकर अपने पति के जीवन, सुख और सौभाग्य की प्रार्थना करती हैं। इस दिन वट (बरगद) वृक्ष की पूजा की जाती है क्योंकि वहीं सावित्री ने यमराज से सत्यवान को पुनर्जीवित कराया था।
🪷 यह कथा आज भी हमें सिखाती है:
- सच्चा प्रेम और निष्ठा अमर होती है।
- नारी शक्ति के आगे मृत्यु भी हार मान लेती है।
- श्रद्धा, साहस और धैर्य से असंभव को भी संभव किया जा सकता है।
📌 “वट सावित्री व्रत 2025” में यह कथा पढ़ना और स्मरण करना हर सुहागिन के लिए पुण्यकारी माना जाता है।
Disclaimer: यह लेख केवल धार्मिक और सांस्कृतिक जानकारी के उद्देश्य से है। कृपया किसी भी पूजा विधि को अपनाने से पूर्व योग्य पंडित या आचार्य की सलाह लें।
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